दर्द को कम करना हो या गले का संक्रमण अथवा तंत्रिका प्रणाली व पाचन तंत्र को दुरूस्त करना है, हर रोग में सतावर अथवा शतावरी (वानस्पतिक नाम ऐस्पेरेगस रेसीमोसस) काम आएगा। जंगलों में पाये जाने वाले सतावर में रोग निवारण गुण होने के कारण ही आयुर्वेद में इसे “औषधियों की रानी” कहा जाता है रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए भी यह बहुत ही कारगर है। इस वजह से वायरस से लड़ने में बहुत सहायक सिद्ध होगाी।सतावर की जड़ का पाउडर बनाकर सुबह व शाम को दूध के साथ लेने पर दिमाग को तेज करने के साथ ही तमाम वायरस से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है। इसकी गांठ या कंद में ऐस्मेरेगेमीन ए नामक पॉलीसाइक्लिक एल्कलॉइड, स्टेरॉयड सैपोनिन, शैटेवैरोसाइड बी, शैटेवैरोसाइड ए, फिलियास्पैरोसाइड सी और आइसोफ्लेवोंस पाये जाते हैं।
इसके प्रयोग से मनुष्य में रोग प्रतिरोधक क्षमता में काफी इजाफा हो जाता है। इस कारण इसे अंदरूनी ताकत को बढ़ाने के लिए लोग सामान्य रूप से प्रयोग करते हैं। यह शरीर के दर्द को कम करने के साथ ही कामोत्तेक भी है। यह महिलाओं के लिए तो बांझपन दूर करने, रजोवृति को दूर करने के साथ ही तमाम रोगों से मुक्ति के लिए रामबाण माना जाता है।
पाचन तंत्र को ठीक करने में भी है सहाय सतावर के प्रयोग से मूत्र विसर्जन के समय होने वाली जलन कम होता है। इसकी जड़ तंत्रिका प्रणाली और पाचन तंत्र की बीमारियों के इलाज के काम आता है। इसका दूध के साथ प्रयोग करने से पाचन तंत्र दुरूस्थ रहता है। यदि व्यक्ति का पाचन ठीक रहे तो तमाम बीमारियां ऐसे ही नजदीक नहीं आती है। यह गले के संक्रमण को भी दूर करता है। इस कारण इसका प्रयोग करते रहने से कोरोना वायरस के संक्रमण का खतरा कम रहता है।
मानसिक रोगों में है फायदेमंद, बांझपन भी करता है दूर
यह अनिद्रा की बीमारी में भी फायदेमंद है। उन्होंने कहा कि इस समय काफी लोग चिंता के कारण अनिद्रा के शिकार हो रहे हैं। इस स्थिति में तमाम मानसिक रोग से ग्रसित होने का खतरा रहता है। ऐसे लोगों के लिए सतावर का प्रयोग बहुत फायदेमंद होगा। इसका उपयोग स्त्री रोगों जैसे प्रसव के उपरान्त दूध का न आना, बांझपन, गर्भपात आदि में किया जाता है। यह जोडों के दर्द एवं मिर्गी में भी लाभप्रद होता है।


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